बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 2
विकास एवं विकास अन्तराल की माप
(Measuring Development and Development Gap)
प्रश्न- आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल की माप किस प्रकार की जाती है?
अथवा
आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल के अभिसूचकों की विवेचना कीजिए।
अथवा
आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल के मापदण्ड बताइये।
उत्तर-
आज विश्व का प्रत्येक राष्ट्र अपने संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग कर आर्थिक विकास की दौड़ में दूसरों से आगे निकल जाने के लिए सतत् प्रयत्नशील है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि कोई देश आर्थिक प्रगति कर रहा है अथवा नहीं? यदि आर्थिक प्रगति कर रहा है तो कितनी? इस तथ्य का पता कैसे लगाया जाये? आर्थिक विकास की कसौटी तथा मापदण्ड क्या हों? आर्थिक विकास एवं आर्थिक संवृद्धि के अनेक रूप एवं पक्ष होने के फलस्वरूप इसकी माप करना एक कठिन कार्य है लेकिन यहाँ पर कुछ मापदण्ड प्रस्तुत किये गये हैं जो कि निम्न हैं
प्राचीन मापदण्ड - प्राचीन अर्थशास्त्रियों एवं विचारकों ने आर्थिक विकास के अलग- अलग मापदण्ड सुझाये हैं। वणिकवादियों ने किसी देश में उपलब्ध सोने-चाँदी की मात्रा तथा विदेशी व्यापार की मात्रा को आर्थिक विकास का सूचक माना है। एडम स्मिथ तथा उनके समकालीन अर्थशास्त्रियों ने शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन का बढ़ना ही आर्थिक विकास माना है। कार्ल मार्क्स अधिकतम सामाजिक कल्याण के आधार पर समाजवाद तथा साम्यवाद की स्थापना को ही आर्थिक विकास का मापदण्ड मानते हैं। जे. एस. मिल ने सहकारिता की स्थापना को ही आर्थिक विकास का मापदण्ड माना है।
आधुनिक मापदण्ड - पुरातन अर्थशास्त्रियों की ही भांति आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने भी आर्थिक विकास का कोई निश्चित मापदण्ड नहीं बताया है। फिर भी आधुनिक विकासवादी अर्थशास्त्रियों द्वारा आर्थिक विकास के निम्नलिखित मापदण्ड प्रस्तुत किये गये हैं
1. वास्तविक राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि मापदण्ड - इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक अर्थशास्त्री हैं- प्रो. मायर एवं वाल्डिविन, कुजनेट्स, यंगसन तथा मीड। इन विकासवादी अर्थशास्त्रियों ने किसी देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि को उस देश के आर्थिक विकास का सूचक बताया है। अन्य शब्दों में यदि किसी देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में निरंतर एवं दीर्घकालिक वृद्धि होती है तो यह कहा जायेगा कि वह देश आर्थिक विकास कर रहा है। यह विचारधारा एक महत्वपूर्ण मापदण्ड के रूप में स्वीकार की जाती है। इस सन्दर्भ में मॉयर एवं बाल्डविन का कथन है कि "आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में दीर्घकाल में वृद्धि होती है।"
वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि को आर्थिक विकास का मापदण्ड मानने में निम्नलिखित कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं-
1. वास्तविक राष्ट्रीय आय की गणना में अनेक व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं जैसे आँकड़ों को एकत्र करने की कठिनाई, वस्तुओं एवं सेवाओं के चयन की कठिनाई, दोहरी गणना की कठिनाई तथा मूल्यों के चुनाव की कठिनाई आदि।
2. इसमें जनसंख्या की समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता। यदि वास्तविक राष्ट्रीय आय तुलना में जनसंख्या अधिक तेजी से बढ़े तब आर्थिक विकास न होकर आर्थिक अवनति होगी।
3. आर्थिक विकास के इस मापदण्ड में समाज में व्याप्त आय के वितरण पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि आर्थिक विकास और आर्थिक कल्याण को प्रभावित करने में आय के वितरण का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
4. यदि आय में वृद्धि के बावजूद उपभोग में वृद्धि न हो तो वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक नहीं हो सकेगी क्योंकि वास्तविक आय में असमान वितरण से आर्थिक संकेन्द्रण होता है और पूँजीपतियों के हाथों में ही अधिकांश सम्पत्ति संकेन्द्रित होने लगती है जिससे समाज के उपभोग स्तर में वृद्धि नहीं हो पाती है।
5. वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि सदैव आर्थिक विकास का द्योतक नहीं है। यदि वास्तविक राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन की वृद्धि प्राकृतिक साधनों के रिक्तिकरण अथवा श्रमिकों के शोषण का परिणाम हो तो इसे हम विकास नहीं कह सकते हैं।
2. प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि मापदण्ड - इस विचार के समर्थकों का मत है कि राष्ट्रीय आय, आर्थिक विकास का सही मापदण्ड नहीं है बल्कि देश में प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि को उस देश के आर्थिक विकास के अभिसूचक के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। किसी भी देश के सामने सबसे प्रमुख समस्या होती है, अपने देश के नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार लाना और जीवन स्तर का प्रति व्यक्ति आय से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। प्रो. पॉल बरन के अनुसार, "आर्थिक वृद्धि की परिभाषा भौतिक वस्तुओं की एक निश्चित काल में प्रति व्यक्ति उत्पादन की वृद्धि के रूप में की जानी चाहिए।' इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय विचारधारा आर्थिक विकास मापने का एक अच्छा अभिसूचक है।
इस विचारधारा के समर्थकों का उद्देश्य इस विचारधारा पर बल देना है कि आर्थिक विकास के लिए वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर जनसंख्या में वृद्धि की दर से अधिक होनी चाहिए परन्तु यह विचारधारा उन प्रश्नों को गौण बना देती है जो समाज के ढाँचे, उसकी जनसंख्या के आकार एवं बनावट, उसकी संस्थाओं तथा साधन स्वरूपों और समाज के सदस्यों में उत्पादन के समान वितरण से सम्बन्ध रखते हैं। इसके अतिरिक्त प्रति व्यक्ति वास्तविक आय की वृद्धि उपभोग के स्तर में वृद्धि की कोई गारण्टी नहीं देती। प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि के साथ प्रति उपभोग में कमी भी हो सकती है। ऐसा तब सम्भव है जब लोग अपनी बचत की दर में वृद्धि करने लगे अथवा राज्य बढ़ी हुई आय का प्रयोग सैन्य एवं अन्य गैर विकास योजनाओं में करने लगे। साथ ही प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि होने, परन्तु न्यायोचित वितरण न होने से धनी व्यक्ति अधिक धनी तथां गरीब और गरीब हो सकते हैं। आय के न्यायपूर्ण वितरण के बिना सामाजिक-आर्थिक कल्याण में वृद्धि होना सम्भव नहीं है -
3. अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक संरचना का स्वरूप - किसी देश की जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना से तात्पर्य कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न व्यवसायों में लगा होना है। आर्थिक विकास एवं जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण के बीच धनात्मक सहसम्बन्ध होता है। प्रो. कोलिन क्लार्क ने समस्त कार्यशील जनसंख्या को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया है।
(अ) प्राथमिक क्षेत्र
(ब) द्वितीयक क्षेत्र
(स) तृतीयक क्षेत्र
अन्य शब्दों में कृषि क्षेत्र, उद्योग क्षेत्र, सेवा क्षेत्र। प्राथमिक क्षेत्र में कार्यशील जनसंख्या के अनुपात में कमी तथा द्वितीयक क्षेत्र एवं तृतीयक क्षेत्र में वृद्धि को आर्थिक विकास का सूचक माना जाता है। अल्पविकसित अर्थव्यवस्थाओं में प्राथमिक क्षेत्र का अंशदान राष्ट्रीय आय में अधिक होता है तथा देश की अधिकांश कार्यशील जनता इस क्षेत्र में लगी रहती है।
4. आर्थिक कल्याण वृद्धि मापदण्ड - यह मापदण्ड राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के स्थान पर लोगों के आर्थिक कल्याण या जीवन स्तर में वृद्धि को आर्थिक विकास की कसौटी के रूप में स्वीकार करता है। इस सम्बन्ध में ओकन एवं रिचर्डसन (B. Okun and R. W. Richardson) का कथन है कि यह आवश्यक नहीं है कि राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय के बढ़ने पर लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हो जाये।
जीवन स्तर मुख्यतः उपभोग के स्तर पर निर्भर करता है इसलिए देश में बढ़ता हुआ उपभोग व जीवन स्तर ही आर्थिक विकास का सूचक है। उन्हीं के शब्दों में आर्थिक विकास, "भौतिक समृद्धि में ऐसा अनवरत दीर्घकालिक सुधार है जो कि वस्तुओं एवं सेवाओं के बढ़ते हुए प्रवाह में प्रतिबिम्बित समझा जा सकता है।"
इस मापदण्ड में भी कुछ विसंगतियाँ हैं जैसे अल्पविकसित देशों में उपभोग प्रवृत्ति पहले से ही अधिक होती है और इन देशों में उपभोग को कम करने का प्रयास भी किया जाता है ताकि बचतों में वृद्धि करके पूँजी निर्माण को बढ़ाया जा सके। इस तरह इन देशों में उपभोग को बढ़ावा देने का अर्थ है कि देश को अविकसित अवस्था में बनाये रखना। दूसरा उपभोग तथा जीवन स्तर अत्यन्त भ्रामक शब्द है जिनकी निरपेक्ष माप सम्भव नहीं है। तीसरा कल्याण के दृष्टिकोण को स्वीकार करने पर केवल इस बात पर ही विचार नहीं किया जा सकता कि 'क्या और कितना उत्पादित किया जाये' बल्कि 'कैसे उत्पादित किया जा सके यह भी देखना होगा। यह सम्भव है कि राष्ट्रीय प्रदा बढ़ने के साथ-साथ वास्तविक और सामाजिक लागतों ( कष्ट, पीड़ा, त्याग, शोषण, नैतिक पतन आदि) में भी वृद्धि हो जाये जो अन्ततः सामाजिक कल्याण को सीमित कर दे।
5. सामाजिक अथवा मूलभूत आवश्यकता सूचक मापदण्ड - आर्थिक विकास के माप के रूप में सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GDP) तथा प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय उत्पाद से असन्तुष्ट अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक विकास को सामाजिक अथवा आधारभूत आवश्यकता सूचक के रूप में मापना प्रारम्भ किया है। इसका कारण यह रहा है कि आर्थिक विकास की माप के सूचक GNP / प्रति व्यक्ति वृद्धि की धारणा में गरीबी, बेरोजगारी तथा आय असमानताओं जैसी समस्या पर ध्यान नहीं दिया जाता। इस सम्बन्ध में डेविड मोरवेट्ज का तर्क है कि विकासशील देशों में 1950-75 के बीच GNP/प्रति व्यक्ति में 3.4 प्रतिशत औसत दर से वृद्धि हुई परन्तु यह वृद्धि दर ऐसे देशों की गरीबी, बेरोजगारी तथा असमानताओं की समस्याओं को सुलझाने में असमर्थ रही। विकासशील देशों में कुपोषण सामान्य है, शिशु मृत्यु दर ऊँची है, अशिक्षा व्याप्त है, बेरोजगारी बढ़ती जा रही है, धन और आय का पुनर्वितरण अत्यन्त विषम है। विकास के GNP प्रति व्यक्ति आय से असन्तुष्ट आर्थिक विचारकों ने 1970 के दशक से विकास प्रक्रिया की गुणवत्ता पर ध्यान देना प्रारम्भ किया जिसके अनुसार वे तीन विभिन्न परन्तु पूरक रोजगार में वृद्धि करने, गरीबी दूर करने तथा आय और धन की विषमताओं को कम करने के लिए मूलभूत मानवीय आवश्यकताओं की कूटनीति पर बल देते हैं। इसके अनुसार जनसाधारण को स्वास्थ्य, शिक्षा, जल खुराक, कपड़ा, आवास, रोजगार आदि के रूप में मूलभूत भौतिक आवश्यकताओं और साथ ही सांस्कृतिक पहचान तथा जीवन और कार्य में उद्देश्य एवं सक्रिय भाग की भावना जैसी अभौतिक आवश्यकताएँ प्रदान करता है।
हिक्स एवं स्ट्रीटन (Hicks and Paul P. Streeten )- मूलभूत आवश्यकताओं के अन्तर्गत निम्नलिखित 6 सामाजिक सूचकों को सम्मिलित किया है-
1. स्वास्थ्य - जन्म के समय जीवन की प्रत्याशा।
2. शिक्षा - प्राथमिक विद्यालयों में जनसंख्या के प्रतिशत के अनुसार प्रवेश द्वारा साक्षरता की दर।
3. खाद्य - प्रति व्यक्ति कैलोरी आपूर्ति।
4. जल आपूर्ति - शिशु मृत्यु दर तथा पीने योग्य पानी तक कितने प्रतिशत जनसंख्या की पहुँच
5. स्वच्छता - शिशु मृत्यु दर तथा स्वच्छता प्राप्त जनसंख्या का प्रतिशत।
6. आवास।
आलोचना - सामाजिक अथवा मूलभूत आवश्यकता सूचकों से सम्बन्धित विकास का एक सामान्य सूचक बनाने में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं-
1. ऐसे सूचक में शामिल किये जाने वाली मदों की संख्या और किस्मों के बारे में अर्थशास्त्रियों के बीच मतैक्य नहीं है।
2. विभिन्न मदों को भार देने की भी समस्या उत्पन्न होती है।
3. अधिकांश सूचक आगतें हैं न कि निर्गत जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।
4. सामाजिक सूचक वर्तमान कल्याण से सम्बन्धित होते हैं न कि भविष्य के कल्याण से।
5. उनमें मूल्य निर्णय पाये जाते हैं।
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- प्रश्न- आर्थिक विकास का आशय तथा परिभाषा कीजिए। आर्थिक विकास की प्रकृति व महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की परिभाषाएँ दीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की प्रकृति बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारको की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले आर्थिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के अनार्थिक तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास पर मानवीय संसाधन के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक हैं?
- प्रश्न- बढ़ती हुई जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के मापक बताइये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में संस्थाओं की भूमिका समझाइए।
- प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में विदेशी पूँजी की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि की गैर-आर्थिक बाधाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- आर्थिक पिछड़ापन आर्थिक तथा अनार्थिक कारकों का परिणाम है। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल की माप किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- गरीबी अथवा निर्धनता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए, भारत में गरीबी के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील देशों की आय एवं सम्पत्ति असमानता में अन्तराल के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक की धारणा किन मान्यताओं पर आधारित है, तथा मानव विकास सूचकांक निर्माण करने के चरणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गरीबी रेखा के निर्धारण का क्या महत्त्व है? तथा भारत में गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- प्रसरण प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सापेक्ष गरीबी बनाम निरपेक्ष गरीबी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक (HDI) क्या है? यह मानव विकास में कितने आयामों को मानता है?
- प्रश्न- भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किसने निर्मित किया? भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किन सूचकों द्वारा की जाती है?
- प्रश्न- "कोई देश इसलिए गरीब रहता है क्योंकि वह गरीब है। " स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- गिनी गुणांक क्या है? गिनी गुणांक कैसे मापा जाता है?
- प्रश्न- गिनी गुणांक का महत्व क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लॉरेंज वक्र क्या है?
- प्रश्न- वैश्विक भूख सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- लिंग सम्बन्धित विकास सूचक क्या है?
- प्रश्न- मानव निर्धनता सूचक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खुशहाली सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) की महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सतत् विकास की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थर लुइस द्वारा प्रस्तुत असीमित श्रम आपूर्ति द्वारा आर्थिक विकास के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- प्रबल प्रयास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध का सिद्धान्त की चित्रात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा विकासशील देशों के सन्दर्भ में इसकी सीमाएं बताइए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के विपक्ष में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिये गये तर्कों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास के सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा परिलक्षित किये गये विचारों को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित तथा असंतुलित विकास पद्धति में कौन बेहतर है?
- प्रश्न- हर्षमैन के असन्तुलित विकास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए तथा विकासशील देशों के लिए इसकी उपयुक्तता का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित एवं असंतुलित विकास की व्याख्या कीजिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए किस प्रकार का विकास अपेक्षित है?
- प्रश्न- असंतुलित विकास सिद्धान्त को समझाइये |
- प्रश्न- सन्तुलित विकास के सम्बन्ध में रोजेन्स्टीन रोडान के विचार को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हर्षमैन द्वारा संतुलित विकास के विचार की किस प्रकार आलोचना की गयी है?
- प्रश्न- रोस्टोव की आर्थिक विकास की अवस्थाओं का वर्णन एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हैरोड तथा डोमर के विकास मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए बताइए कि भारत जैसे अल्पविकसित देश में यह कहाँ तक लागू किया जा सकता है?
- प्रश्न- हैरोड द्वारा प्रस्तुत विकास दरों व समीकरण बताइए।
- प्रश्न- हैरोड के विकास मॉडल की आलोचनायें बताइए।
- प्रश्न- हैरोड का विकास मॉडल डोमर के विकास मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
- प्रश्न- हैरोड के विकास प्रारूप का संक्षेप में परीक्षण कीजिए। भारत जैसे विकासशील देशों में यह कहाँ तक लागू होता है?
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यष्टि स्तर पर नियोजन समझाइए।
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में छुरी-धार सन्तुलन की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत के जनसंख्या वृद्धि की बदलती हुई विशेषताओं पर एक नोट लिखिए।
- प्रश्न- जनांकिकी से क्या अभिप्राय है? जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या एवं पर्यावरण किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में सहायक है अथवा बाधक।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या का आर्थिक विकास पर तथा आर्थिक विकास का जनसंख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरण क्या है? इसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- जनसंख्या नीति 2000 की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समावेशी विकास की आवधारणा या महत्व क्या है?
- प्रश्न- समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- बाजार विफलता का अर्थ स्पष्ट कीजिए एवं बाजार विफलता के कारण बताइये।
- प्रश्न- सरकार की विफलता के कारण बताइए।
- प्रश्न- बाजार विफलता को ठीक करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ क्या है तथा इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- मानव पूँजी क्या है? आर्थिक विकास में मानवीय पूँजी निर्माण की भूमिका एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "जनसंख्या राष्ट्र के लिये सम्पत्ति है और दायित्व भी।" इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण का क्या अर्थ है तथा मानवीय संसाधनों के विकास में क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवीय साधनों में विनियोग कितने मदों में किया जाता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के उपायों पर चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव पूँजी निर्माण के घटकों तथा अर्धविकसित देशों में मानव पूँजी के निम्न स्तर होने के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण के क्या-क्या मापदण्ड हैं? तथा इसके मापदण्डों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास से आपका क्या तात्पर्य है? किसी विकासशील (अल्पविकसित ) देश की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- भारत जैसे एक अल्पविकसित देश के प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए। भारत के अल्पविकसित होने के प्रमुख कारणों को बताइए।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था के मध्य अन्तर स्पष्ट करते हुए आर्थिक विकास के सूचकांकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अल्पविकास के प्रमुख मापदण्ड़ों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- अल्पविकास के कारणों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था में अन्तर स्पष्ट करें।
- प्रश्न- क्या भारत एक अल्पविकसित देश है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिर्डल के चक्रीय कार्यकरण का सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विकास के फाई एवं रेनिस सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- फाई- रेनिस सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइए।
- प्रश्न- फाई- रेनिस के सिद्धान्त को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फाई-रेनिस सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
- प्रश्न- प्रो. हिणिन्स द्वारा प्रतिपादित औद्योगिक द्वैतवाद सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- तकनीकी द्वैतवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'द्वैतवाद' एक विकासशील अर्थव्यवस्था के विकास की किस प्रकार बाधित कर सकती है?
- प्रश्न- बोइके का सामाजिक दुहरापन सिद्धान्त समझाइये।
- प्रश्न- मिन्ट का वित्तीय दुहरेपन को दूर करने का विकास सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- अल्पविकास का निर्भरतापरक सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काल्डोर का आर्थिक वृद्धि मॉडल की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हैरड की तटस्थ तकनीकी प्रगति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तटस्थ एवं गैर तटस्थ तकनीकी प्रगति क्या है? तटस्थता के सम्बन्ध में हिक्स की धारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में तकनीकी प्रगति का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सोलो के दीर्घकालीन वृद्धि मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए [
- प्रश्न- सोलो मॉडल की सीमाएँ लिखिए।
- प्रश्न- सोलो के वृद्धि मॉडल के अनुसार एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन किन तत्वों पर निर्भर करता है? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- करने से जानकारी (कौशल अर्जन) (Learning By Doing) को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- तकनीकी प्रगति का अभिप्राय क्या है?
- प्रश्न- स्टिग्लिट्ज का असममित सूचना सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शोध एवं विकास (Research and Development ) पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में शिक्षा, शोध एवं ज्ञान की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्जात संवृद्धि सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- एक विकासशील अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी की आवश्यकता महत्व तथा खतरों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बहुराष्ट्रीय निगम से आप क्या समझते हैं? भारत जैसे विकासशील देश में निजी क्षेत्र एवं बहुराष्ट्रीय निगमों की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- विश्व बैंक के क्या कार्य हैं? विकासशील देशों के सम्बन्ध में विश्व बैंक की क्या नीति है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की स्थापना कब हुई थी तथा विकासशील देशों के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की नीतियों की स्पष्ट विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मौद्रिक नीति के प्रमुख उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बहुराष्ट्रीय निगम क्या है? उनके पक्ष एवं विपक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- भारत के बाह्य ऋण' समझाइये |
- प्रश्न- 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निजी विदेशी निवेश के विचार से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आर्थिक विकास में घाटे का वित्त प्रबंधन की भूमिका की व्याख्या कीजिए [
- प्रश्न- किसी देश के आर्थिक वृद्धि में विदेशी व्यापार की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- एक विकासशील अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति किस प्रकार कार्य करती है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों की प्रगति को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सफलताओं एवं असफलताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भारत को होने वाले लाभों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विश्व बैंक से भारत को क्या लाभ हुए हैं? समझाइये |
- प्रश्न- विश्व बैंक की प्रमुख आलोचनायें लिखिये।
- प्रश्न- विश्व बैंक के उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विश्व बैंक के कार्यों का विश्लेषण कीजिए।